पैरालंपिक 2024: भारत को पैरालंपिक में ओलंपिक की तुलना में अधिक पदक प्राप्त होने का कारण क्या है?

पैरालंपिक 2024: भारत के पैराएथलीटों ने रियो में पदक प्राप्त कर पैरालिंपिक में देश का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।

यह भारतीय खेल प्रेमियों के लिए गर्व और खुशी का विषय है। हालांकि, कई लोग इस सफलता से चकित भी हैं, जिसका कारण ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन है।

भारत ने ओलंपिक में 110 एथलीटों की टीम भेजी थी, जिसके परिणामस्वरूप देश को छह पदक मिले, जिनमें एक रजत और पांच कांस्य पदक शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, छह खिलाड़ियों ने चौथे स्थान पर अपनी स्थिति बनाई।

दो सप्ताह बाद प्रारंभ हुए पैरालंपिक में भारत की 84 सदस्यीय टीम ने ओलंपिक की तुलना में चार गुना अधिक पदक प्राप्त किए। इस पर स्वाभाविक रूप से कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि भारत ने ओलंपिक के मुकाबले पैरालिंपिक में ऐसा उत्कृष्ट प्रदर्शन कैसे किया।

वास्तव में, दोनों प्रतियोगिताओं की तुलना करना उचित नहीं है। क्योंकि इनकी प्रकृति और प्रतिभागियों की क्षमताएं भिन्न होती हैं।

यह माना जाता है कि ओलंपिक शारीरिक कौशल का मूल्यांकन करता है, जबकि पैरालंपिक दृढ़ संकल्प और साहस का परीक्षण करता है। हालांकि, यदि हम आंकड़ों पर ध्यान दें, तो पैरालंपिक में भारत का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर दिखाई देता है। इसके पीछे कुछ कारण भी हैं।

पैरालंपिक खेलों में ओलंपिक की अपेक्षा अधिक पदक प्रदान किए जाते हैं और इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या भी कम होती है। पेरिस ओलंपिक में 204 देशों ने 32 विभिन्न खेलों में 329 स्वर्ण पदकों के लिए प्रतिस्पर्धा की, जबकि पैरालंपिक में 170 देशों ने 22 खेलों में 549 स्वर्ण पदकों के लिए मुकाबला किया।

यह स्पष्ट है कि पैरालंपिक में पदक जीतने की संभावनाएँ अधिक होती हैं। इसलिए, किसी देश के लिए ओलंपिक की तुलना में पैरालंपिक में अधिक पदक प्राप्त करना स्वाभाविक है।

उदाहरण के लिए, टोक्यो में चीन ने ओलंपिक में 89 और पैरालंपिक में 207 पदक हासिल किए। ग्रेट ब्रिटेन ने टोक्यो ओलंपिक में 64 और पैरालंपिक में 124 पदक जीते।

भारत ने टोक्यो ओलंपिक में 7 और पैरालिंपिक में 19 पदक प्राप्त किए। पेरिस की पदक तालिका भी इसी प्रकार की स्थिति दर्शा रही है। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि ओलंपिक में अधिक पदक जीतने वाले समृद्ध देश जैसे अमेरिका और जापान पैरालंपिक में पीछे रह रहे हैं।

इसके विपरीत, नाइजीरिया जैसे देशों ने ओलंपिक की अपेक्षा पैरालंपिक में अधिक सफलताएँ प्राप्त की हैं। इसी प्रकार, यूक्रेन का पैरालंपिक में प्रदर्शन भी अत्यंत सराहनीय रहा है।

जब पैरालंपिक का विषय उठता है, तो किसी देश की स्वास्थ्य सेवाएं और विकलांगता के प्रति दृष्टिकोण ऐसी दो महत्वपूर्ण बातें हैं जो वित्तीय संसाधनों से अधिक प्रभाव डालती हैं। यह एक कारण है कि ग्रेट ब्रिटेन ने पैरालंपिक में संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में अधिक सफल प्रदर्शन किया।

भारत जैसे देशों में स्वास्थ्य सेवाओं में विषमताएँ हैं। हालांकि, कई अन्य देशों, यहां तक कि अमेरिका की तुलना में, भारत में ये सेवाएं अधिक किफायती दरों पर उपलब्ध हैं।इस प्रकार, केवल पैरा-एथलीटों ही नहीं, बल्कि भारत में किसी भी विकलांग व्यक्ति को आवश्यक चिकित्सा उपचार प्राप्त करने की संभावना अधिक है।

अनेक देशों में विकलांग व्यक्तियों को कलंकित किया जाता है या उनके प्रति सहानुभूति का व्यवहार किया जाता है। शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग खिलाड़ियों को वहां वास्तविक खिलाड़ी नहीं माना जाता है।

भारत इस संदर्भ में कोई अपवाद नहीं रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में, पिछले चार ओलंपिक खेलों के दौरान, इस दृष्टिकोण में सामाजिक और खेल नियोजन के स्तर पर महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले हैं।

यह कहा जा सकता है कि भारत के पैरालंपिक प्रदर्शन में भी इसी बदलाव का संकेत मिलता है।

पिछले बीस वर्षों में भारत में पैरा खेलों के प्रति दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। इसके साथ ही, खिलाड़ियों को केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्रों से मिलने वाली सहायता में भी वृद्धि हुई है।

2010 में भारत में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों के पश्चात, केंद्रीय खेल मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले सामान्य और पैरा-एथलीटों को दिए जाने वाले नकद पुरस्कार की राशि को समान कर दिया है।

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