“गोविंदा आला रे!!……. दही हांडी महाराष्ट्र और गोवा के शहरों में मनाया जाने वाला एक उत्सव है। दही हांडी को महाराष्ट्र में गोपालकला के नाम से भी संबोधित किया जाता है।दही का मतलब दही होता है और हांडी का मतलब मिट्टी का बर्तन होता है जिसमे दुधजन्य पदार्थ रखे जाते है।कृष्ण जन्माष्टमी के अगले ही दिन दही हांडी मनाई जाती है|कही जगहोंपर तो रात के १२ बजे कृष्णजन्म के बाद रात को ही मनाई जाती है | कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है।
दही हांडी उत्सव भगवान कृष्ण के जीवन जीने के तरीके उनके प्रति रहने वाली श्रध्दा का प्रतिक है। बचपन में छोटे से कान्हा को दही और मक्खन बहुत पसंद था जैसे बड़े होते गए दही और मक्खन का शौक बढ़ गया और युवा कृष्ण इसे चुराने के लिए प्रसिद्ध हो गए।
कृष्ण और उनके साथी ने दूध और मख्खन चुराकर खाने के लिए पड़ोस के घरों पर नज़र रखते थे, तो उनको चोरी करने से रोकने के लिए पूरे पड़ोस की महिलाएँ दुधजन्य पदार्थोंको झूमर की तरह छत से बांधकर रखने लगी ताकि उनके छोटे छोटे हाथों की पहुंच से दूध और मख्खन दूर रहे। लेकिन कृष्ण ने इसका हल ढूंडा और मानव पिरामिड की रचना की| पिरामिड की सहाय्यता से उनको दूध और मख्खन की के पास जाना होता था|तब से यह भारतीय लोककथा का हिस्सा बन गया है। और हर साल जन्माष्टमी के दौरान भगवान कृष्ण के जीवन का यह प्रसंग खेला जाता है
ये खेल खुले मैदान में या सड़क चौराहे पर हंडी को ऊंचाई पर बांधकर रखते है। दही हांडी आसमान में कई मंजिल तक ऊंची हो सकती है. भगवान कृष्ण की कहानी में महिला चरवाहों का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाएं पिरामिड संरचना पर पानी या कुछ फिसलन वाला तरल फेंककर मानव पिरामिड बनाने के किसी भी प्रयास को विफल कर देती हैं।
मुंबई तथा राज्य के अन्य भागोंमे दही हांडी एक प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में खेली जाती है। इस आयोजन में हर साल सैकड़ों की संख्या में टीम भाग लेती है। इस कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध हस्तियों को आमंत्रित किया जाता है। हाल के वर्षों में पुरस्कार राशि एक करोड़ तक पहुंच गई है जो भारतीय रुपये के 10 मिलियन के बराबर है।
समय के साथ पूरे आयोजन का अपना नारा है “गोविंदा आला रे आला!”