रक्षाबंधन का पर्व हर वर्ष श्रावण मास में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 19 अगस्त को आयोजित होगा। रक्षाबंधन को हिंदू धर्म में भाई-बहन के संबंध का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। यह त्योहार भाई-बहन के बीच प्रेम और विश्वास को और अधिक गहरा बनता है।
राखी बांधने के साथ ही घर में एक विशेष उत्सव का वातावरण बनता है। रक्षाबंधन के इस पर्व से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन हम आपको रक्षाबंधन की सबसे प्राचीन कथा, जो कृष्ण और द्रौपदी से संबंधित है, जिसे हम बचपन से सुनते आ रहे हैं।
भगवान कृष्ण की उंगली में चोट लग गई थी और खून बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने तुरंत अपने भरजडित साड़ी का पल्लू फाड़कर कृष्ण जी की कटी हुई उंगली पर बांध दिया। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से रक्षासूत्र या राखी बांधने की परंपरा की शुरुआत हुई। जब द्रौपदी का वस्त्रहरण हो रहा था, तब सभा में कोई भी उनकी सहायता नहीं कर सका, लेकिन श्री कृष्ण जी ने उनकी रक्षा की।
इसी दिन महाराष्ट्र के मुंबई और कोकण तट के आस-पास के क्षेत्रों के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी समुद्री क्षेत्रों में नारळी पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। नारळी पूर्णिमा मछली पकड़ने वाले समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक पारंपरिक उत्सव है। इस दिन समुद्र और जल के देवता भगवान वरुण को चावल, फूल और नारियल जैसे भोग अर्पित किए जाते हैं।
नारली पूर्णिमा के अवसर पर, कोळी समुदाय भगवान वरुण की आराधना करता है। श्रद्धालु वरुण को नारियल अर्पित करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। भक्तगण वरुण की पूजा करते हुए शांत जल और प्राकृतिक जल संकटों से सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं।